Last modified on 15 जनवरी 2010, at 20:49

मंगलाचरण / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 15 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> जासौं जाति विष…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि
चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै ।
कहै रतनाकर कवित्त-बर-व्यंजन मैं
जासौ स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥
जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदिर मैं
जड़ता-विषम-तम-तोम-दहिबौ करै ।
जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन
रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥