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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही / ग़ालिब
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 27 जनवरी 2008 का अवतरण
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
क़ता कीजे न त'अल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही
मेरे होने में है क्या रुस्वाई
ऐ वो मजलिस नहीं ख़ल्वत ही सही
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
उम्र हरचंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही
कुछ तो दे ऐ फ़लक-ए-नाइंसाफ़
आह-ओ-फ़रियाद की रुख़सत ही सही
हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बेनियाज़ी तेरी आदत ही सही
यार से छेड़ा चली जाये "असद"
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही