भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नंद और जसोमति के प्रेम पगे पालन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 16 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> नंद और जसोमति …)
नंद और जसोमति के प्रेम पगे पालन की,
लाड़-भरे लालन की लालच लगावती ।
कहै रतनाकर सुधाकर-प्रभा सौं मढ़ी,
मंजु मृगुनैनि के गुन-गन गावती ॥
जमुना कछारनि की रंग रस-रारनि की,
बिपिन-बिहारनि की हौंस हुमसावती ।
सुधि ब्रज-बासिनि दिवैया सुख-रासिनी की,
ऊधौ नित हमकौं बुलावन कौं आवती ॥5॥