भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो / खड़ी बोली

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 16 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह–गीत

अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो
कँवर चौंरी चढ़ गयौ
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबा मेरी सामणी।
तेरे बाबा को अपणी दादी दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी।
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा ताऊ मेरी सामणी
तेरे ताऊ को अपणी ताई दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा भाई मेरी सामणी
तेरे भाई को अपणी बाहण दिला दूँ,
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबुल मेरी सामणी
तेरे बाबुल को अपणी अम्मा दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी।