भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो गया सर्वनाश / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 17 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मदिरा के सामने झुक गया अमृत
चन्दन में व्याप गया विष
पानी से निकल पडी आग
अन्धा हो गया विवेक
पंगु हो गई बुध्दि
गूंगा हो गया ज्ञान
हो गया सर्वनाश।


रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा