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पुनरावृत्ति / शलभ श्रीराम सिंह
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पेट पर रखा गया पत्थर
दिल पर पहाड़
मन पर थोप दी गई बादलों की पर्त
भीगी आँखों से देखा गया सपना
धार-धार हुआ
हुआ बूँद-बूँद
न सीप का मुँह खुला
न बाँस की गाँठ
हवा की झोली में गया सब कुछ
पत्थर बनने के लिए दुबारा
बनने के लिए पहाड़ और बादल।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा