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किससे मागूँगा सम्बल तुम्हारे बिना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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किससे मागूँगा सम्बल तुम्हारे बिना।
जिन्दगी है मरूस्थल तुम्हारे बिना।।1।।
और सब देव तप-साधना खोजते।
कौन नाशेगा कलि मल तुम्हारे बिना।।2।।
विषय-आतप-से जलते मेरे माथ पर,
कौन डालेगा आँचल तुम्हारे बिना।।3।।
मुझ-से विष-बेलि पर किसके बल से उगे,
ईश-अनुराग का फल तुम्हारे बिना।।4।।
और कुछ कर न कर प्रेम ‘पंकिल’ में भर,
नाथ बन जाये पागल तुम्हारे बिना।।5।।