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कैसे दुखिया जी बहलाऊँ / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कैसे दुखिया जी बहलाऊँ

कैसे दु खिया जी बहलाऊँ, मेरे प्रियतम बोलो तो।
शून्य हृदय से क्या स्वर गाऊँ, मेरे प्रियतम बोलो तो।

स्नेह-लहर वह रही न क्षण-क्षण
रूकता काम प्रवाह नहीं।
भटक भटक मर रहा बटोही
कहीं दीखती राह नहीं ।
रो-रो अपनी राम कहानी
किसे सुनाऊँ बोलो तो ।।1।।

मनुजाधम कैसे सुख पाये
खाता रोज हजार जहर ।
हे मनमीत! कहाँ हो तुम बिन
सूना पड़ा अस्थि-पंजर।
कैसे तुम्हें दया निधि पाऊँ
किस दर जाऊँ बोलो तो0- ।।2।।

सभी एक स्वर से चिल्लाते
श्रुति-स्मृति महा मुनीश प्रवर।
तुम समान बस एक तुम्हीं हो
सच्चे प्रभु करूणा सागर ।
तुम्हें छोड़ फिर किसके द्वार
गुहार लगाऊँ बोलो तो0-।।3।।

क्या न बनोगे तुम पथ-संबल
‘पंकिल’ अन्हरे की लकुटी।
लुटी-लुटी सच्चे प्राणेश्वर
तुम बिन जन की पर्ण-कुटी।
सुधि-तिनका बिन भग्न नीड़ निज
कैसे छाऊँ बोलो तो-
शून्य हृदय से क्या 0..।।4।।