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तुम्हारा आंचल उड़ रहा है / आलोक श्रीवास्तव-२

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मेरी स्मृतियों में तुम्हारा आंचल उड़ रहा है
मन लौट रहा है पीछे
छूटती रही हैं सड़कें
पगवाट
ट्रेन की पटरियां
कुऒं के जगत
सघन अमराईयां
पीछे छूटता जा रहा है
आकाश में चांद
इस खामोशी में सुनायी दे रहा
पत्ते का हिलना तक
तुम्हारे पांवों की हल्की थाप बोल रही है
हंसी से चंचल आंखें
बरसों बाद जाग उठी है
मेरी याद में
पर क्या समय ने अब भी उन आंखों में
वही चंचलता रहने दी होगी ?
तुम जो कभी नहीं कर सकीं प्यार
अपने ही भीतर छिपे झरनों का निनाद
सुन नही सकीं

कल रात क्या स्वप्न देखा होगा तुमने
अभी किस सोच में डूबी होगी ?
जबकि इस वक़्त
मेरी स्मृतियों में
तुम्हारा आंचल उड़ रहा है
तुम्हारी आंखों की हंसी
तुम्हारे बोल
तुम्हारे पैरों की थाप गूंज रही है ...