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क्षमा करते हुए जीना / आलोक श्रीवास्तव-२

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पहले दर्द था
तुम्हारे विरह का

आज तुम्हारे जीवन के अभाव
तंत्र के विरुद्ध
तुम्हारे क्षीण प्रतिरोध को समझ पा रहा हूँ

जहां-जहां तुम हारी हो
मैं भी टूटा हूँ
वैसे तो
तुम्हारा-मेरा रिश्ता
कुछ भी नहीं ।

जानता हूँ
बहुत सहा है तुमने

फिर भी रोना मत
थकना-टूटना मत
हमें
क्षमा करते हुए जीना ।