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अकेला चल, अकेला चल / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
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अकेला चल, अकेला चल
भले ही हो न कोई साथ, तेरी बाँह धरने को
दिखाई दे न कोई प्राण का दुख-भार हरने को
दिया बन आप अपना ही, अँधेरा दूर करने को
नहीं है दूसरा संबल
नहीं है व्योम में कोई, उधर तू देखता क्या है!
सितारे आप हैं भटके हुए, उनको पता क्या है!
सभी हैं खेल शब्दों के, किताबों में धरा क्या है!
निकल इस जाल से, पागल!
यही विश्वास रख मन में कि तेरी लौ अनश्वर है
दिखाई दे रहा जो रूप, मृण्मय आवरण भर है
भले ही देह मिटती हो, तुझे कब काल का डर है!
धरे पथ सत्य का अविकल
अकेला चल, अकेला चल
अकेला चल, अकेला चल