भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकेले मुझको छोड़ न देना / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
घनश्याम चन्द्र गुप्त (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:33, 15 जनवरी 2007 का अवतरण
कवि: गुलाब खंडेलवाल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
अकेले मुझको छोड़ न देना
यह जग मुझे भुला भी दे पर तुम मुँह मोड़ न लेना
रोग, शोक, चिंता, शंकायें
कितनी भी जीवन में आयें
दीप न आस्था के बुझ पायें
देख काल की सेना
जब झंझा झपटे अंबर से
काँप उठूँ अनजाने डर से
तब डाँड़ें ले मेरे कर से
तुम यह नौका खेना
अकेले मुझको छोड़ न देना
यह जग मुझे भुला भी दे पर तुम मुँह मोड़ न लेना