भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़रहत शहज़ाद
Kavita Kosh से
फ़रहत शहज़ाद
<sort order="asc">
- एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा / फ़रहत शहज़ाद
- अगर बदन एक मकान है / फ़रहत शहज़ाद
- खा कर ज़ख़्म दुआ दि हम ने / फ़रहत शहज़ाद
- ख़ुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था / फ़रहत शहज़ाद
- ख़्वाबों में तेरे गर मेरी ख़्वाहिश नहीं होगी / फ़रहत शहज़ाद
- क्या ख़बर थी के मैं इस दर्जा बदल जाऊँगा / फ़रहत शहज़ाद
- बहुत बुरा है मगर फिर भी तुमसे अच्छा है / फ़रहत शहज़ाद
- मुझे ख़बर थी वो मेरा नहीं पराया था / फ़रहत शहज़ाद
</sort>