भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल / घनानंद
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:48, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल :हँसनि ल…)
दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल
हँसनि लसनि त्यों कपूर सरस्यौ करै ।
साँसन सुगंध सौंधे कोरिक समोय धरे,
अंग-अंग रूप-रंग रस बरस्यौ करै ॥
जान प्यारी तो तन ’अनंदघन’ हित नित,
अमित सुहाय आग फाग दरस्यौ करै ।
इतै पै नवेली लाज अरस्यौ करै, जु प्यारौ -
मन फगुवा दै, गारी हू कों तरस्यौ करै ॥