भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होरी के मदमाते आए / घनानंद
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:01, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> '''(राग रामकली)''' होरी के मदमाते आए, लाग…)
(राग रामकली)
होरी के मदमाते आए, लागै हो मोहन मोहिं सुहाए ।
चतुर खिलारिन बस करि पाए, खेलि-खेल सब रैन जगाए ॥
दृग अनुराग गुलाल भराए, अंग-अंग बहु रंग रचाए ।
अबीर-कुमकुमा केसरि लैकै, चोबा की बहु कींच मचाए ॥
जिहिं जाने तिहिं पकरि नँचाए, सरबस फगुवा दै मुकराए ।
’आनँदघन’ रस बरसि सिराए, भली करी हम ही पै छाए ॥