भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बेटी के लिए-2 / प्रमोद त्रिवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 14 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद त्रिवेदी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> वह कोना जो …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह कोना जो अब खाली है,
भरा है-
स्मृतियों से।

बस, स्मृतियाँ ही रह जाती हैं
जिनके सहारे हम जीते हैं
समुद्र का किनारा छोड़ चुके हैं हम
है वह अब हमारी स्मृतियों में,
स्मृतियों में होते हैं अब हम वहाँ
जहाँ होता है- अचरज

हम अपनी आयु में नहीं
अब अचरज में जी रहे हैं!