भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बेटी के लिए-4 / प्रमोद त्रिवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 14 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी में होने चाहिए कुछ स्वाद
कुछ रस-कुछ ऊर्जा
टूटनी नहीं चाहिए लय।

माना भोलेपन का नहीं है समय
न ही समय है आलाप के विस्तार का
है यह शुद्ध हिसाबी-किताबी समय
तब भी थोड़ी तो बनी ही रहनी चाहिए
जीवन में बेवकूफ़ियाँ