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ओल्गा अरबेनिना के लिए
ईर्ष्यालु शुष्क-होठों पर मेरे, सिर्फ़ तेरी ही बात
दूसरों की तरह, सुन्दरी! मैं भी चाहूँ तेरा साथ
बिन तेरे यह हवा मुझे भी, अब लगती है उदास
शब्द शान्त नहीं करते, मेरे सूखे होंठों की प्यास
अब मुझे ईर्ष्या नहीं तुझसे, मैं चाहूँ तुझको, यार!
तू बधिक है, मैं बलि का बकरा बनने को तैयार
न तू है, यार! ख़ुशी मेरी, न तुझसे कोई अनुराग
पर तेरे बिन रुधिर में जैसे लग जाती है आग
क्षण-भर को ठहर ज़रा, फिर मैं तुझको समझाऊँ
आनन्द मिले न संग तेरे, रम्भा! मैं पीड़ा ही पाऊँ
कोमल चेहरा जब तेरा लज्जित-रक्तिम हो जाए
ओ रूप-गर्विता! तेरी कशिश मुझको बहुत लुभाए
आ, जल्दी से तू पास मेरे, डर लागे तेरे बिन
तू कमसिन है, जान मेरी! मैं चाहूँ तुझे पल-छिन
बस, इतनी ही इच्छा है कि तू आ-जा मेरे पास
अब ईर्ष्या मैं नहीं करूँगा, दिलाता हूँ विश्वास
रचनाकाल : 1920