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सुनता हूँ तुम्हारा उच्चारण भास्वर / ओसिप मंदेलश्ताम
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सुनता हूँ तुम्हारा उच्चारण भास्वर
लगे जैसे बाज़ कोई सीटी बजाता है
मुझे लगता है जीवन्त तुम्हारा स्वर
बिजली चमके गगन में, मन मुस्कराता है
क्या है! कहती हो तुम, मन बहक जाता है
का ए! मैं दोहराता हूँ, मन गुदगुदाता है
कहीं दूर सुन पड़ती है फिर आवाज़ तुम्हारी-
इस धरती से आख़्र कुछ मेरा भी नाता है
प्रेम के पंख होते हैं- लोगों का कहना है
पर सौ गुना ज़्यादा होते हैं मृत्यु के पंख
मन-आत्मा सदा करें संघर्ष इन दोनों से
और शब्द उड़े वहीं, जहाँ गूँजे आत्म-कंठ
रेशम-सी चिकनाई है मंद स्वरों में तेरे
और हवा की गूँज बहुत है फुसफुसाहट में
अंधों की तरह लेटे हैं हम अँधेरे में गहरे
पीकर अनिद्रा का काढ़ा इस लम्बी रात में
रचनाकाल : 1918