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सो नहीं मैं पाता हूँ / तेजेन्द्र शर्मा
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रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा
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डरा डरा सा मैं रातों को जाग जाता हूँ
नींद आती है मगर सो नहीं मैं पाता हूँ
सवाल ये नहीं ये शहर क्यों डराता है
सवाल ये है कि मैं क्यों भटक सा जाता हूँ
ये शहर मेरा है समझो ना इसे बेगाना
मगर मैं क्यों यहां का शहरी ना बन पाता हूँ
जो लोग गाँव की मिट्टी को यहां लाए हैं
बदन में उनके अपनेपन की महक पाता हूँ
जनम जहाँ हुआ क्या देश वही होता है
करम की बात को मैं क्यों समझ ना पाता हूँ