भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धारीदार समय / राग तेलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 2 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> समय इस पल बेहद महीन …)
समय इस पल बेहद महीन है
छूकर देखो
उसके गुज़रते हुए शरीर को
वह तुम्हारे हाथ पर
अदृश्य कोमल धारियाँ छोड़ जाएगा
समय
चले जाने के बाद भी
हमारे क़रीब से होकर गुज़रता रहेगा
पर हम उसे फिर नहीं छुएंगे
हाथ पर जो धारियाँ
उन्हें ही सहलाया करेंगे
तुमने कुछ कहा ?
देखो !
तुम्हारी बात भी अंकित हुई मन में
ठीक इसी वक़्त
ठीक इसी समय की तरह
और देखना
यह फिर कभी
धारीदार स्मृतियों को
छूने के समय काम आएगा ।