जब भी
छूती हूँ
रौशनी के रंग
कुछ खंडहर हुए
उदासी के रंग
साथ हो लेते हैं....
अय तल्ख़ हवाओ!
अबके....
गुज़र जाना जरा
किनारे से....
जब भी
छूती हूँ
रौशनी के रंग
कुछ खंडहर हुए
उदासी के रंग
साथ हो लेते हैं....
अय तल्ख़ हवाओ!
अबके....
गुज़र जाना जरा
किनारे से....