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प्रेम पर कुछ बेतरतीब कविताएँ-4 / अनिल करमेले

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एक फूल में कितने रंग
कितने रंगों में कितनी खशबुएँ
बनतीं और बिखरतीं
साझे सपनों से

बहुत कोमल हाथों से
रोपना था इन्हें
विश्वास और यथार्थ की ज़मीन पर

हमारे हाथों की
नरमाहट चली गई थी
वे भी बिखर गए मेरी तरह
तुम्हारी तरह।