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प्रेम पर कुछ बेतरतीब कविताएँ-5 / अनिल करमेले
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शायद इसी समय के लिए
संचित हुए थे मेरे आँसू
दुख की परतें भी जम रही थीं
इसी वर्तमान के लिए
शायद इसी दिन तक के लिए
जीना था मुझे यह जीवन
हाँ
इसी तरह
टूट जाने के लिए।