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पौ फटी धूप का दरिया निकला / जयंत परमार
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पौ फटी धूप का दरिया निकला
रास्ता आँख झपकता निकला
ज़िस्म की क़ैद से साया निकला
उम्र भर जागने वाला निकला
नींद की बस्ती में पिछली शब में
फिर वही ख़्वाब पुराना निकला
होंठ पर इस्मे मोहम्मद बनकर
ख़ाना-ए-दिल से उजाला निकला
वो मेरी तरह दुखी है शायद
इक सितारा लबे दरिया निकला