भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन उसे रो लेता था / जयंत परमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 11 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयंत परमार |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> कौन उसे रो लेता …)
कौन उसे रो लेता था
मेरा दुख तो तन्हा था
शाम ढली तो तन्हा पेड़
किसको सदाएँ देता था
हाथ हिलाती थी खिड़की
शाम का आख़िरी तारा था
काँपते बर्गों गुल की तरह
हाल हमारे दिल का था
काग़ज़ पर खिड़की खींची
जिसमें तेरा चेहरा था।