Last modified on 15 अप्रैल 2010, at 18:29

कालीबंगा: कुछ चित्र-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 15 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद }} {{KKCatKavita}} <poem> थेहड़ में सोए शहर का…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

थेहड़ में सोए शहर
कालीबंगा की गलियाँ
कहीं तो जाती हैं
जिनमें आते-जाते होंगे
लोग

अब घूमती है
साँय-साँय करती हवा
दरवाज़ों से घुसती
छतों से निकलती
अनमनी
अकेली

भटकती है
अनंत यात्रा में
बिना पाए
मनुज का स्पर्श।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा