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कालीबंगा: कुछ चित्र-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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इतने ऊँचे आले में
कौन रखता है पत्थर
घड़कर गोल-गोल
सार भी क्या था
सार था
घरधणी के संग
मरण में।
ये अंडे हैं
आलणे में रखे हुए
जिनसे
नहीं निकल सके
बच्चे
कैसे बचते पंखेरू
जब मनुष्य ही
नहीं बचे।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा