भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसके बारे में / धूमिल

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:40, 16 अप्रैल 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पता नहीं कितनी रिक्तता थी-
जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया
पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे
मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में
बीत गया

भलमनसाहत
और मानसून के बीच खड़ा मैं
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
मैं अपनी व्यवस्थाओं में
बीमार हूँ