भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन मानेगा नसीहत ही मेरी / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 18 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश यती }} {{KKCatGhazal}} <poem> कौन मानेगा नसीहत ही म…)
कौन मानेगा नसीहत ही मेरी
खुल गई है जब हक़ीक़त ही मेरी।
चुटकुले सब आपके दिलचस्प हैं
अनमनी कुछ है तबीयत ही मेरी।
कौन अपमानित कराता है मुझे
सच कहूँ तो सिर्फ़ नीयत ही मेरी।
साथ होगा कौन अन्तिम दौर में
तय करेगी अब वसीयत ही मेरी।
यार तुम भी सज गए बाज़ार में
पूछते फिरते थे क़ीमत ही मेरी।