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वो नज़र में नज़ारा नहीं है / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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वो नज़र में नज़ारा नहीं है और कोई तमन्ना नहीं है

बात कहता है अपनी वो लेकिन उसमें सुनने का माद्दा नहीं‍ है

सच बयाँ तुम करोगे भला क्या तुमने कुछ भी तो देखा नहीं है

ज़िन्दगी है सफ़र धूप का भी बरगदों का ही साया नहीं है

शेर कहता हूँ वरना समन्दर क़ूज़े मे‍ यूँ सिमटता नहीं है

नाख़ुदाओं की है मेहरबानी कश्तियों को किनारा है