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रंग : छह कविताएँ-4 (सफ़ेद) / एकांत श्रीवास्तव

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दुनिया की सबसे पहली स्‍ञी के
स्‍तनों से बहकर जो अमर हो गया
वही रंग है यह
यों यह आपको कॉंस और
दूधमोंगरों के फूलों में भी मिल जायेगा

जब‍ स्ञियों के पास
बचता नहीं कोई दूसरा रंग
वे इसी रंग के सहारे काट देती हैं
अपना सारा जीवन

यह रंग उन बगुलों का भी है
जो नगरों के आसमान से
कभी-कभी तफरीह के लिए आते हैं
और बीट करते हैं गॉंव-बस्तियों के पेड़ों पर

मैं इस रंग से पूछूंगा उस हंस के बारे में
जो मोती चुगता है
और जानता है मानसरोवर का पता

यह रंग जब दीवारों से रूठ जाता है
लगभग निश्चित हो जाती है
उनके गिरने की तारीख

जब टूट चुके तारों के शोक में
घर लौटते हैं हम
हमारे सामने एक साफ कागज में मुस्‍कुराता है यह रंग
हमें आमंञित करता हुआ.