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अपराजिता / सुभाष काक

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रचनाकार: सुभाष काक

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(१९९९, "एक ताल, एक दर्पण" नामक पुस्तक से)


बचपन में

महिषासुर की

पौराणिक कथा पढी।


पर इतिहास चुप है।

क्या यह प्रसंग भूत का नहीं,

भविष्य का हो?

विश्वास करो,

प्राचीन ऋषि को

भविष्य का बोध था।


सत्य है,

प्रचण्ड ज्वाला धधकी

भैंसों ने पहाड तोडे

वह अधिरूढ हैं।


देवी का परिचय कैसे हो --

कृत्रिममुख,

कीर्त्तिमुख

के पीछे?


क्या रूप बान्ध सकता है

अपरिमित को?


दुर्गा, ललिता,

घोररूपा, भद्रकाली,

अपर्णा,

ब्रह्मवादिनी।

क्या शब्द बान्ध सकता है

अपराजित को?


एक तरंग

चल पडी है।