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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 13 / नवीन सागर
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अंधकार!
आसमान में बुझे हुए तारे
सन्नाटे से खिंचे!
अंधकार!
दरवाजों के आर-पार
निर्जन गड्ढों में दस्तकें
खामोश.
अंधकार!
नींद के तार-तार परदों के पीछे खड़ी रात
सारे आकार उसमें डूबे
रोशनी दूर एक दरार
आंख से ओझल होते ही अंधकार.
भटका हुआ मैं
हर घर से गायब
रात के पिंजरे में दूर-दूर तक
दुनिया में दिख रहा हूं!