भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 19 / नवीन सागर

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 3 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्‍बी रात / नवीन सागर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर तरफ जाता
हर तरफ से आता हुआ हारा
तुम्‍हारे पास आया जहॉं
तुम नहीं थे.

बार-बार ऐसा होने से
जीवन पूरा होगा इस बार.