भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं सन्तूर नहीं बजाता / नवीन सागर
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 5 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्बी रात / नवीन सागर…)
संतूर नहीं बजाता
नहीं बजाता तो नहीं बजाता
पर क्या बात कि नहीं बजाता
है तो कितना बेतुका आघात
कि मैं संतूर नहीं बजाता.
कैसे इतना जीवन गुजर गया
मुझे खयाल तक नहीं आया
कि मैं संतूर नहीं बजाता!
और होते-होते हालत आज ये हुई
कि मैं इतनी बड़ी दुनिया में
संतूर नहीं बजाता!
कोई संगीतज्ञ नहीं हूं मगर
जानना है मुझे आखिर
क्या था वह जो
मेरे और संतूर के बीच अड़ा रहा.
यह नहीं कि मैं बजाना चाहता हूं
जानना चाहता भर हूं आखिर वह
क्या था
मेरे और संतूर के बीच
कि मैं दूर-दूर तक
संतूर नहीं बजाता.