भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 10 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन …)
सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन,
चिर सुन्दर सुख-दुख का मन,
सुन्दर शैशव-यौवन रे
सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!
सुन्दर वाणी का विभ्रम,
सुन्दर कर्मों का उपक्रम,
चिर सुन्दर जन्म-मरण रे
सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!
सुन्दर प्रशस्त दिशि-अंचल,
सुन्दर चिर-लघु, चिर-नव पल,
सुन्दर पुराण-नूतन रे
सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!
सुन्दर से नित सुन्दरतर,
सुन्दरतर से सुन्दरतम,
सुन्दर जीवन का क्रम रे
सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!
रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२