भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनुहार / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 12 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बेढब बनारसी }} {{KKCatKavita}} <poem> आज जाओ मान आली . बात करनी ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आज जाओ मान आली .
बात करनी है मुझे --
लाओ इधर तो कान आली .

घुल रहा हूँ स्नेहमें, अलि,
लो हृदय के गेहमें, अलि.
तुम हमारे वास्ते --
बन जाओ अमृतबान आली .

फूल गुलगप्पा बनो मत
नैन बानों से हनो मत
ब्राह्मण भोजन बनो तुम
मैं बनूँ यजमान आली .

लूटती हो दिल हमारा,
क्या किया इसने तुम्हारा
मैं नहीं हिन्दू बिचारा
तुम न हो अफगान आली .

हे प्रिये तेरे प्रणय में,
चोट ऐसी है हृदय में,
काटता जिस भाँति कोई
नया पाद-त्राण आली .