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इन सपनों के पंख न काटो / महादेवी वर्मा
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लेखिका: महादेवी वर्मा
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इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो!
सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौट कहाँ आता है?
बीज धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड़ पाता है?
अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है।
सपनों में दोनों ही गति है
उडकर आँखों में ही आता है।
इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो!
मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रँग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा।
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो!
इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो!