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आम रसीले / मन्नन द्विवेदी गजपुरी

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पके-पके क्या आम रसीले, हरे-लाल हैं नीले-पीले।
आँधी अगर कभी आ जाती, आम हज़ारों पीट गिराती।
इनको लेकर चलो ताल पर, वहाँ खूब पानी से धोकर।
सौ-पचास तक खाएँगे हम, आज न भोजन पाएँगे हम।

’सरस्वती’ पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक में प्रकाशित