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बुढ़ापा / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
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बासठ के हो गए हो
झुर्रियाँ देखी हैं आईने में कभी?
अब भी स्नो-पाउडर लगाते हो
नहीं रही वो तुम्हारी गोरी चिट्टी शकल
खाँसते बहुत हो
अब ये सिगार फूँकना बंद कर दो
सब कहने लगे हैं--
गंजा आ गया गंजा आ गया