भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युद्ध से बची / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:38, 22 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …)
जो विकल हैं पल-प्रतिपल
कि बचा रहे पेड़ों में रस
नदियों में जल
और सूरज में ताप
कि बचा रहे तितलियों में रंग
पंछियों में कलरव
और बच्चों में गान
कि बचा रहे पृथ्वी का स्वप्न
सृष्टि का संगीत
और दुनिया का वारिस
युद्ध से बची इस पृथ्वी को मैं सौंपता हूं
मरा नहीं जिनका यह दिवास्वप्न