भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अधर सुख से हों स्पंदित प्राण / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 22 मई 2010 का अवतरण ("अधर सुख से हों स्पंदित प्राण / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
अधर सुख से हों स्पंदित प्राण,
बहे या विरह अश्रु जल धार,
फूल बरसें, या कंटक, वाण,
मुझे प्रभु की इच्छा स्वीकार!
तुम्हारी रुचि मेरी रुचि नाथ,
गहो या गहो न मेरा हाथ,
छोड़ दो जीर्ण तरी मँझधार
लगाओ या भव सागर पार!