भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हथेली / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:30, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विषाद से भीगे चेहरे पर
रखना चाहता हूँ
हथेली

पराजय से झुके हुए कँधों पर
रखना चाहता हूँ
हथेली

चाहता हूँ चट्टान की तरह
मेरी हथेली
रोक ले
अँधेरे को

आँखों में समाने से पहले
चाहता हूँ हथेली पकड़कर
डूबने वाला
किनारे तक पहुँच जाए
 
तितली की तरह सुख को
रखना चाहता हूँ
हथेली में बंद करके
पँखुड़ियों की तरह टीस को
हथेली पर फैलाकर
महसूस करना चाहता हूँ

अपनी धरती को रखकर
अपनी हथेली पर
मैं मग्न रह सकता हूँ
छूकर देखो इसे
हथेली नहीं
मेरा हृदय है ।