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आवारा न हो जाएँ / हेमन्त श्रीमाल
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रोको इन हवाओं को आवारा न हो जाएँ
पत्ता ही पत्ते का हत्यारा न हो जाए
मज़हब की लड़ाई में डर है तो महज़ इतना
टुकडे़ टुकडे़ ऑंगन दोबारा न हो जाए
चाहत के घरौंदो तक बारूदी सुरंगें हैं
भूले से कोई पागल अंगारा न हो जाए
कुर्सी ने बना डाले गलियारे ही गलियारे
अब तो ये दुआ है कि अँधियारा न हो जाए