भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरी क़ातिल असि से मेरा / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 28 मई 2010 का अवतरण ("तेरी क़ातिल असि से मेरा / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
तेरी क़ातिल असि से मेरा
साक़ी, जो कट जाए सर
नयनों के घन भी बरसाएँ
रुधिर अश्रुओं की जो झर!
रोम रोम मेरे शरीर का
यदि जी उठे पृथक् तन धर,
एक एक कर करूँ न तुझ पर
अगर निछावर, मैं कायर!