भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऋतु वसंत की आयी / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / ग…)
ऋतु वसंत की आयी
नव प्रसून फूले, तरुओं ने नव हरियाली पायी
पाकर फिर से रूप सलोना
महक उठा वन का हर कोना
करती जैसे जादू-टोना
फिरी नवल पुरवाई
लज्जा के अवगुंठन सरके
नयनों में नूतन रस भरके
गले लगी लतिका तरुवर के
भरती मृदु अँगड़ाई
ऋतु वसंत की आयी
नव प्रसून फूले, तरुओं ने नव हरियाली पायी