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हमारे कहने पर मत जायें / गुलाब खंडेलवाल

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हमारे कहने पर मत जायें
कब हमने मन से चाहा है, शरण आपकी आयें!
 
मन की उछल-कूद है तब तक
जब तक आप न छूते मस्तक
जब तक हैं ये छवियाँ मोहक
इसके दाँयें -बाँये
 
आप शरण में यदि ले लेंगे
इसके सारे राग मिटेंगे
कैसे नित नव रास रचेंगें,
होंगी ये रचनायें!
 
हाँ, यदि साथ इसे भी कर लें
निर्गुण में भी कुछ गुण भर लें
तो हम भी वन का पथ धर लें
जग से दृष्टि फिरायें

हमारे कहने पर मत जायें
कब हमने मन से चाहा है, शरण आपकी आयें!