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वह मनुष्य जिसके रहने को / सुमित्रानंदन पंत

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वह मनुष्य जिसके रहने को
जो छोटा आँगन, गृह-द्वार,
खाने को रोटी का टुकड़ा,
पीने को मदिरा की धार!
जो न किसी का सेवक शासक,
हँसमुख हों जिसके सहचर,
कहता उमर सुखी है वह नर,
स्वर्ग उसे है यह संसार!