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बिन वेतन का चौकीदार / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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टॉम हमारा कितना अच्छा!
लगता है यह सीधा सच्चा!!
ठण्डे जल से रोज नहाता!
फिर मुझसे कंघी करवाता!!
बड़े-बड़े हैं इसके बाल!
एक आँख है इसकी लाल!!
घर भर को है इससे प्यार!
प्राची करती इसे दुलार!!
बिन वेतन का चौकीदार!
सच्चा है यह पहरेदार!!